अदनि सी “मैं”

मैं अदनि सी, नादान सी

थोड़ी बेबाक तो थोडी अनजान सी

मैं वो फूल हूँ काँटों वाला, जो हर किसी का अरमान नही

जो खिल जाऊ तो रूह महका दू,

तेरी बगिया को गुलशन बना दू,

पर मेरा खिलना यहा मंजूर किसे है

रोज आते है मुझे तोड़ने वाले

मुझे मेरी ही खुशियों की कसमे देने वाले

और फिर अपनी नाकाम कोशिशो को

मुझपर ही थोपने वाले,

इन्हें मेरा ये ग़ुरूर गवारा कब है।

मैं अदनि सी, नादाँ सी, थोड़ी बेबाक तो थोड़ी अनजान सी|

जब थोड़ी बड़ी हुई तो लोगो ने समझाया

खेलना कूदना इसका काम नही।

इसे है बस घर मैं रहना, बाहर निकलना आसान नही

इतना निडर बनके क्या करेगी !

जब तेरे रखवाली के लिए हम मर्द है साथ।

लाझ, शरम और घर के काम

अपनों के लिए जीना और मरना

खुद को कभी आगे मत करना

इन्ही सब से है बेटी तेरी शान

पर मुझे कहा था ये सब समझ आता

क्यूकि थी मैं थोड़ी शैतान सी

मैं अदनि सी नादान सी, थोड़ी बेबाक तो थोड़ी अनजान सी|

जो दुनिया कहे वो मुझे कभी नही था करना

मुझे तो अपनी एक नई राह पर था चलना

खुशियां महकाती,

जीने के नए तरीके ढूंढ लाती

स्वाभिमान से चलती

कभी नन्हे बच्चे सी खिलखिलाती,

तो किसी को सपने देखना सिखलाती,

किसी के चेहरे पे परेशानी की शिकन तक ना आती

जो मुझसे मिलता उसे वो हौसला दे जाती।

एक लाइन में बयां करू तो जनाब ….

इन्सानियत को रूहानियत से मिलवाती।

मैं अदनि सी नादान सी, थोड़ी बेबाक तो थोड़ी अनजान सी||👧

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